कश्तिया

निकलेथे एक ही कश्ती में, हम तुम किनारे से,

पर जब पहोंचे दुसरे किनारे पर, न थे साथ हम तुम,

ये न तो समुन्दर की शरारत थी, न कोई आंधी आई थी,

न कोई कश्ती डूबी थी बिच मजधार में कही,

हम तुम तो ना बदले थे हमारे इस सफर में कही,

हमे क्या था पता की, हमारी कश्तिया ही बदल जानी थी,

-Jignesh

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